Wednesday, April 13, 2011

मेरे लहू से तेरा रंग जुदा कर न सके,
बंदगी लाख की, पर ख़ुद को ख़ुदा कर न सके...
हम तो खामोश ही बैठे थे, फ़साना ऐसा,
जिसको ता-उम्र पढ़ा, फिर भी बयाँ कर न सके.
मर्ज़ ऐसा था, कई कारागर आये तो सही,
ज़हर भी दे गए, फिर भी तो दवा कर न सके.
एक नज़र देख कर आँखों ने आपकी जो किया...
मर के भी हम वो, एहसान अदा कर न सके.

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