Thursday, January 19, 2012

untitled 2

नीली रोशनी में नहाये बदन,
क्या-क्या दास्तानें सुनाएं बदन.

महकी ख्वाहिशों का
एक लिबास है, उजास है;
जो उँगलियों के पोर से
फिसल-फिसल के पुतलियों
की सीप में बरस रही
हैं चूम कर,
मचल रहे दो लब कहीं.

है एड़ियों पे फिर रहा
वो रेशमी सी रात का
कोई सिरा, जो खुल गया
की बेखबर जो चाँद था
वो आसमान की नाव में
है डोलता मचल-मचल
बरस रहा पिघल-पिघल
वो खिड़कियों के रास्ते
यूँ तैरता है हर तरफ
कि हाथ बस बढ़ा सा लें
तो ओढ़ लें ये दो बदन...

ये दो बदन
जो एक हैं.

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