Friday, April 20, 2012

खोज

आज खोजते रहे हम,
सारा दिन, सारी रात...
तुम्हारे सीने की गर्माहट,
तुम्हारे कंधे, तुम्हारे हाथ.

पत्थर की एक गीली सड़क,
और उसके किनारे भीगते हुए,
मेरे माथे से पानी पोंछने के बहाने,
तुम्हारा मेरे गालों को सहलाना
दो प्याली चाय
तमाम उम्र के किस्से
बिन बात के बिगड़ना,
बात-बात पे बहलाना...

सारा दिन लेटे रहना...
यूँ ही, खामोश,
और फिर शिकायत करना,
'तुम कुछ कहते क्यूँ नहीं?'
यूँ ही लिपटे रहना,
और फिर उलझ जाना...
रात के चाँद से, सुबह के तारे तक,
कोई गुफ्तगू नहीं.

तुम्हारे बाज़ुओं से लिपट जाना
किसी तावीज़ की तरह
और बार-बार उन्हें चूम के,
तुम्हारे नाम का कलमा पढ़ना
तुम्हारे आगोश में बहते रहना
इस शहर के सैलाब में
तुम्हे छू के समझना,
ये सब सच है
तुम्हे थाम के, ख्वाब गढ़ना...

तुम्हारे जिस्म की हर तह, हर रेशा,
हर करवट, हर सिलवट
हर अंगड़ाई, हर मोड़
हर गोशा, हर हरकत,
हर ख़ामोशी, हर बात...
तुम्हारे सीने की गर्माहट,
तुम्हारे कंधे, तुम्हारे हाथ.
आज खोजते रहे हम,
सारा दिन, सारी रात.