तुम्हारी उँगलियों के पोरों पे सूरज बैठ गया है...
जगमगाती हुई जुगनू सी मुझसे कहती हैं,
आज मुट्ठी जो हुई बंद, शाम ढल जाए?
मैं भी बेलौस बादलों कि तरह बढ़ता हूँ...
...अपने हाथों को तेरे हाथ पे यूँ रखता हूँ...
...कि इस चिराग में बादल का ये कपास कहीं,
तुम्हारे नूर के आगोश में ही जल जाए...
Sunday, February 13, 2011
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