आज जब आंख खुली...
न जाने क्यूँ बिस्तर
किसी वीराने में सोये हुए पत्थर की तरह
सर्द लगा.
एक सफ़ेद शॉल पश्मीने की
जिस्म पे फैली हुयी सी पाई,
और खिड़की के बाहर देखा
किसी दरवेश सा
नाचता हुआ- चाँद.
सब्ज़ मलमल के गलीचे में,
खुद को लिपटा हुआ पाया...
इस टीस, इस तसव्वुर,
इस मदहोशी का नाम सोचता रहा...
तभी कंधे पे,
तुम्हारे नाखूनों से उकेरे हुए,
बेमायाना हर्फ़
बोल पड़े...
Tuesday, October 11, 2011
Monday, October 3, 2011
Time Capsule
रात के साहिल पे बैठे...
न जाने किस नादानी में,
दो सिक्के उछाले थे
वक़्त के ठहरे पानी में...
क्या मालूम था,
सेहर होने तक,
उसके दायरे हमें
अपनी गिरफ़्त में ले लेंगे...
फुसफुसाती हुई हवा से
बातें तो की थीं
आस्मां में सितारों को
बहते हुए भी देखा था...
कोहरें के महीन धागों से,
एक पैरहन भी बुना था
मगर सुबह पाया...
कि फखत हमारी उंगलियाँ ही थीं...
जो उलझ के रह गयीं थीं
कितना फासला होता है
होने/ न होने के दरमियाँ?
एक धुन पे तैरती,
धुएं की लकीर से पूछो...
जिसके आगोश में सहेजकर,
एक लम्हा बहा दिया था हमने
वक़्त के दरिया में,
कि किसी रात
इसी साहिल पे बैठे हुए
दो अजनबी
अचानक ही कुछ गुनगुनायेंगे...
शायद... यही धुन...
TRANSLATION-
sitting on the shore of the night,
we tossed two coins
in the still water of time
not knowing,
that by dawn,
its ripples will engulf us...
we chatted with the rustling winds
saw the floating stars in the sky
and knit a shawl from the thin threads of fog
only to discover,
that it were our fingers,
intertwined.
whats the distance
between being/ not being?
ask a thread of smoke,
that floats on a tune
which, we sailed
in the ocean of time
with a moment carefully kept within...
so that some night,
sitting on this shore
two strangers
would suddenly hum something...
perhaps... the same tune...
न जाने किस नादानी में,
दो सिक्के उछाले थे
वक़्त के ठहरे पानी में...
क्या मालूम था,
सेहर होने तक,
उसके दायरे हमें
अपनी गिरफ़्त में ले लेंगे...
फुसफुसाती हुई हवा से
बातें तो की थीं
आस्मां में सितारों को
बहते हुए भी देखा था...
कोहरें के महीन धागों से,
एक पैरहन भी बुना था
मगर सुबह पाया...
कि फखत हमारी उंगलियाँ ही थीं...
जो उलझ के रह गयीं थीं
कितना फासला होता है
होने/ न होने के दरमियाँ?
एक धुन पे तैरती,
धुएं की लकीर से पूछो...
जिसके आगोश में सहेजकर,
एक लम्हा बहा दिया था हमने
वक़्त के दरिया में,
कि किसी रात
इसी साहिल पे बैठे हुए
दो अजनबी
अचानक ही कुछ गुनगुनायेंगे...
शायद... यही धुन...
TRANSLATION-
sitting on the shore of the night,
we tossed two coins
in the still water of time
not knowing,
that by dawn,
its ripples will engulf us...
we chatted with the rustling winds
saw the floating stars in the sky
and knit a shawl from the thin threads of fog
only to discover,
that it were our fingers,
intertwined.
whats the distance
between being/ not being?
ask a thread of smoke,
that floats on a tune
which, we sailed
in the ocean of time
with a moment carefully kept within...
so that some night,
sitting on this shore
two strangers
would suddenly hum something...
perhaps... the same tune...
अर्ज़ी
क्या चाहिए?- उसने कहा
सच ही तो है, क्या चाहिए मुझे?
दालान की काई को पैर से कुरेदते हुए,
खड़ा रहा...
यूँ लगा, सूरज मेरे सर से गुज़रकर,
पैरों तले बैठ गया है.
न जाने कितनी देर वहाँ खड़ा पिघलता रहा...
फिर हथेली में छुपाया हुआ कागज़ का एक टुकड़ा
उसकी जानेब बढ़ाते हुए
शायद पहली बार उसकी आँखों में देखा...
कागज़ की सिलवटों के साहिल पे
तैरती हुई स्याही में लिखी एक रुबाई,
जो न जाने कितनी बार दिल में दोहराई थी
मेरे कानों में पिघलते शरारे की तरह गिरी...
और मेरे हवास को बहा ले गयी...
होश आया,
तो उस ड्योढ़ी पे लिपटी हुई किसी बेल की तरह
खुद को खड़ा पाया...
क्या चाहिए? -उसने फिर पूछा
और क्या चाहिए था मुझे, इन चंद लम्हों के सिवा?
मुस्कुराकर कहा...
अब... कुछ नहीं.
सच ही तो है, क्या चाहिए मुझे?
दालान की काई को पैर से कुरेदते हुए,
खड़ा रहा...
यूँ लगा, सूरज मेरे सर से गुज़रकर,
पैरों तले बैठ गया है.
न जाने कितनी देर वहाँ खड़ा पिघलता रहा...
फिर हथेली में छुपाया हुआ कागज़ का एक टुकड़ा
उसकी जानेब बढ़ाते हुए
शायद पहली बार उसकी आँखों में देखा...
कागज़ की सिलवटों के साहिल पे
तैरती हुई स्याही में लिखी एक रुबाई,
जो न जाने कितनी बार दिल में दोहराई थी
मेरे कानों में पिघलते शरारे की तरह गिरी...
और मेरे हवास को बहा ले गयी...
होश आया,
तो उस ड्योढ़ी पे लिपटी हुई किसी बेल की तरह
खुद को खड़ा पाया...
क्या चाहिए? -उसने फिर पूछा
और क्या चाहिए था मुझे, इन चंद लम्हों के सिवा?
मुस्कुराकर कहा...
अब... कुछ नहीं.
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